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Monday 17 February 2020

Some lines


रुतबा तो ख़ामोशियों का होता है
अल्फ़ाज़ का क्या है
वो तो बदल जाते हैं
अक्सर हालात देख कर

----------------------------------------------

ना रख उम्मीद ए वफ़ा किसी परिंदे से
जब पर निकल आते हैं
तो अपने भी आशियाना भूल जाते हैं

- Iqbaal

----------------------------------------------

कितना भी ज्ञानियों के साथ बैठ लो
तजुर्बा बेवकूफ़ बनने के बाद ही मिलता है

----------------------------------------------

तुझे पाने की कोशिश में
कुछ इतना खो चूका हूँ
की तू मिल भी जाए अगर
तो अब मिलने का ग़म होगा

- Wasim Barelvi
----------------------------------------------

एक उम्र गुस्ताख़ियों के लिए भी नसीब हो
ये ज़िन्दगी तो बस अदब में ही गुज़र गयी

----------------------------------------------

ज़िन्दगी की उलझनों ने कम कर दी हमारी शरारतें
और लोग समझते हैं की हम समझदार हो गए

Poetry

Posted by Subham  |  No comments

Some lines


रुतबा तो ख़ामोशियों का होता है
अल्फ़ाज़ का क्या है
वो तो बदल जाते हैं
अक्सर हालात देख कर

----------------------------------------------

ना रख उम्मीद ए वफ़ा किसी परिंदे से
जब पर निकल आते हैं
तो अपने भी आशियाना भूल जाते हैं

- Iqbaal

----------------------------------------------

कितना भी ज्ञानियों के साथ बैठ लो
तजुर्बा बेवकूफ़ बनने के बाद ही मिलता है

----------------------------------------------

तुझे पाने की कोशिश में
कुछ इतना खो चूका हूँ
की तू मिल भी जाए अगर
तो अब मिलने का ग़म होगा

- Wasim Barelvi
----------------------------------------------

एक उम्र गुस्ताख़ियों के लिए भी नसीब हो
ये ज़िन्दगी तो बस अदब में ही गुज़र गयी

----------------------------------------------

ज़िन्दगी की उलझनों ने कम कर दी हमारी शरारतें
और लोग समझते हैं की हम समझदार हो गए

2/17/2020 10:56:00 pm Share:

0 comments:

कभी कभी मैं ये सोचता हूँ कि मुझ को तेरी तलाश क्यूँ है 
कि जब हैं सारे ही तार टूटे तो साज़ में इर्तिआश क्यूँ है

कोई अगर पूछता ये हम से, बताते हम गर तो क्या बताते
भला हो सब का की ये न पूछा की दिल पे ऐसी खराश क्यूँ है

उठा के हाथों से तुम ने छोड़ा चलो न दानिस्तान तुम ने तोड़ा
अब उल्टा हम से तो ये न पूछो की शीशा ये पाश पाश क्यूँ है

अजब दो-राहे पे ज़िन्दगी है कभी हवस दिल को खींछती है
कभी ये शर्मिन्दगी है दिल में कि इतनी फ़िक्र-ए-माश क्यूँ है

न फ़िक्र कोई न जुस्तजू है न ख़्वाब कोई न आरज़ू है
ये शख्स तो कब का मर चुका है तो बे-कफ़न फिर ये लाश क्यूँ है

- Javed Akhtar






आईने का साथ प्यारा था कभी
एक चेहरे पर गुज़ारा था कभी

आज सब कहते हैं जिस को ना-ख़ुदा
हम ने उस को पार उतारा था कभी

ये मेरे घर की फ़ज़ा को क्या हुआ
कब यहाँ मेरा तुम्हारा था कभी

था मगर सब कुछ न था दरिया के पार
इस किनारे भी किनारा था कभी

कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
जो मेरे सारे का सारा था कभी

आज कितने ग़म हैं रोने के लिये
एक तेरे दुःख का सहारा था कभी

जुस्तजू इतनी भी बेमानी न थी
मंज़िलों ने भी पुकारा था कभी

ये नए गुमराह क्या जानें मुझे
मैं सफ़र का इस्तिआरा था कभी


इश्क के किस्से ना छेड़ो दोस्तों
मैं इसी मैदान में हारा था कभी

- Shariq Kaifi






याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बाद
एक सितारे ने ये पूछा रात ढल जाने के बाद

मैं ज़मीं पर हूँ तो फिर क्यों देखता हूँ आसमान
ये ख़याल आया मुझे अक्सर फिसल जाने के बाद

दोस्तों के साथ चलने में भी खतरे हैं हज़ार
भूल जाता हूँ हमेशा मैं संभल जाने के बाद

अब ज़रा सा फ़ासला रख कर जलाता हूँ चराग़
तजर्बा ये हाथ आया हाथ जल जाने के बाद

वहशत-ए-दिल को है सहरा से बड़ी निस्बत अजीब
कोई घर लौटा नहीं घर से निकल जाने के बाद

----------------------------------------------------------

हम को लुत्फ़ आता है अब फ़रेब-ख़ाने में
आज़माएँ लोगों को ख़ूब आज़माने में

दो-घड़ी के साथी को हम-सफर समझते हैं
किस क़दर पुराने हैं हम नए ज़माने में

तेरे पास आने में आधी उम्र गुजरी है
आधी उम्र गुज़रेगी तुझ से ऊब जाने में

एहतियात रखने की कोई हद भी होती है
भेद हमीं ने खोले हैं भेद को छुपाने में

ज़िन्दगी तमाशा है और इस तमाशे में
खेल हम बिगाड़ेंगे खेल को बनाने में

- Alam Khursheed





झीलें क्या हैं?
उसकी आँखें
उम्दा क्या है?
उसका चेहरा
ख़ुश्बू क्या है?
उसकी साँसें
खुशियाँ क्या हैं?
उसका होना

तो ग़म क्या है?
उससे जुदाई
सावन क्या है?
उसका रोना
सर्दी क्या है?
उसकी उदासी
गर्मी क्या है?
उसका ग़ुस्सा

और बहारें?
उसका हँसना
मीठा क्या है?
उसकी बातें
कड़वा क्या है?
मेरी बातें
क्या पढ़ना है?
उसका लिक्खा

क्या सुनना है?
उसकी ग़ज़लें
लब की ख़्वाहिश?
उसका माथा
ज़ख़्म की ख़्वाहिश?
उसका छूना
दिल की ख्वाहिश?
उसको पाना

दुनिया क्या है?
इक जंगल है
और तुम क्या हो?
पेड़ समझ लो
और वो क्या है?
इक राही है

क्या सोचा है?
उस से मुहब्बत
क्या करते हो?
उस से मुहब्बत
मतलब पेशा?
उस से मुहब्बत
इस के अलावा?
उस से मुहब्बत
उससे मुहब्बत........उससे मुहब्बत........उससे मुहब्बत

- Varun Anand





कह दो दुनिया से न उलझे किसी दीवाने से
ये अजब लोग हैं जी उठते हैं मर जाने से

- Mushtaq Ahmed Mushtaq





उसको मेरी तड़प का गुमां तक नहीं हुआ
मैं इस तरह जला के धुँआ तक नहीं हुआ

तुमने तो अपने दर्द के किस्से बना लिए
हमसे हमारा दर्द बयां तक नहीं हुआ

ये देखना है किस घड़ी दफनाया जाऊँगा
मुझ को मरे हुए तो कई साल हो गए

- Waseem Nadir





ये ना हो के भी हर जगह होना तेरा
मुझे तलाश करके इस तरह से खोना तेरा
अब जुस्तजु में मारेगा
मौत के घाट अब यही उतारेगा

मुझे ज़िंदगी के खेल में, ये हिज्र ही पिछाड़ेगा
बरगद सी इस जान को, तेरा ज़िक्र ही उखाड़ेगा

ये लोग भी अजीब हैं
कैसे सवाल करते हैं
मेरी तिशनगी को देख कर
मुझे पागल ख़याल करते हैं

क्यों मिलना ज़रूरी है
कहानी तो है, क्या हुआ जो अधूरी है
अच्छा! तू कोई ख़ुदा है
जो ना मिलने पे इक्तिफ़ा कर लूँ
या खिड़की से आयी धूल है
जो दिल पोंछ के सफ़ा कर लूँ

चल तू ही बता दे
मैं ये कैसे किस तरह कर लूँ
क्या तूने किया है कभी
जो मुझसे हो गया है
मंज़िल पे पोहोंच कर
क्या तू भी खो गया है

कोई है ऐसा जिसे सोच कर
तू हँस पड़े और रो भी दे
न भूल पाए घड़ियाँ मिलन की
जितने भी वो जो भी थे
मुझ-से होते हैं ये रोग पालने वाले
अपने ही अंदर ये जोग पालने वाले

में तो आतिश हूँ
मुमकिन नहीं की डर जाऊँ
तुम ढूंढ लो बारिश कोई
फ़िकर नहीं की मर जाऊँ

----------------------------------

वो कच्ची उम्र के प्यार भी
हैं तीर भी तलवार भी
ताज़ा हैं दिल पे वार भी
और खूब यादगार भी

घर जाएं वेहशतें
ऐसी भी कोई रात हो
सर सफेद हो गया
लगता है कल की बात हो

ये कच्ची उम्र के प्यार भी
बड़े पक्के निशान देते हैं
आज पे कम ध्यान देते हैं
बहके बहके बयान देते हैं
उनको देखे हुए मुद्दत हुई
और हम अब भी जान देते हैं

-----------------------------------------

क्या प्यार एक बार होता है
नहीं ये बार बार होता है
तो फिर क्यों किसी एक का, इंतेज़ार होता है
वही तो सच्चा प्यार होता है
अच्छा! प्यार भी क्या इंसान होता है
कभी सच्चा कभी झूठा, बेईमान होता है
उसकी रगों में भी क्या, ख़ानदान होता है
मक़सद-ए-हयात नफ़ा, नुकसान होता है
प्यार तो प्यार होता है
बिछड़ भी जाए तो, दिलदार होता है
जब भी हो जिससे भी हो, शानदार होता है
हो एक बार के सौ दफ़ा, प्यार का भी कोई शुमार होता है

----------------------------------------------

तुम कमाल करते हो
यूँ धड़कनों का मेरी
इस्तेमाल करते हो
के जलतरंग मैं हो जाऊँ
रंग रंग मैं हो जाऊँ
तुम्हारा नाम ले कोई
में ख़ुद-ब-ख़ुद से हो जाऊँ
आमदों में खो जाऊँ
और इस खुशी में रो जाऊँ
तेरी दिल फ़रेब छाओं में
मैं आज थक के सो जाऊँ

- Yasra Rizvi

Sher O Shayari

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कभी कभी मैं ये सोचता हूँ कि मुझ को तेरी तलाश क्यूँ है 
कि जब हैं सारे ही तार टूटे तो साज़ में इर्तिआश क्यूँ है

कोई अगर पूछता ये हम से, बताते हम गर तो क्या बताते
भला हो सब का की ये न पूछा की दिल पे ऐसी खराश क्यूँ है

उठा के हाथों से तुम ने छोड़ा चलो न दानिस्तान तुम ने तोड़ा
अब उल्टा हम से तो ये न पूछो की शीशा ये पाश पाश क्यूँ है

अजब दो-राहे पे ज़िन्दगी है कभी हवस दिल को खींछती है
कभी ये शर्मिन्दगी है दिल में कि इतनी फ़िक्र-ए-माश क्यूँ है

न फ़िक्र कोई न जुस्तजू है न ख़्वाब कोई न आरज़ू है
ये शख्स तो कब का मर चुका है तो बे-कफ़न फिर ये लाश क्यूँ है

- Javed Akhtar






आईने का साथ प्यारा था कभी
एक चेहरे पर गुज़ारा था कभी

आज सब कहते हैं जिस को ना-ख़ुदा
हम ने उस को पार उतारा था कभी

ये मेरे घर की फ़ज़ा को क्या हुआ
कब यहाँ मेरा तुम्हारा था कभी

था मगर सब कुछ न था दरिया के पार
इस किनारे भी किनारा था कभी

कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
जो मेरे सारे का सारा था कभी

आज कितने ग़म हैं रोने के लिये
एक तेरे दुःख का सहारा था कभी

जुस्तजू इतनी भी बेमानी न थी
मंज़िलों ने भी पुकारा था कभी

ये नए गुमराह क्या जानें मुझे
मैं सफ़र का इस्तिआरा था कभी


इश्क के किस्से ना छेड़ो दोस्तों
मैं इसी मैदान में हारा था कभी

- Shariq Kaifi






याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बाद
एक सितारे ने ये पूछा रात ढल जाने के बाद

मैं ज़मीं पर हूँ तो फिर क्यों देखता हूँ आसमान
ये ख़याल आया मुझे अक्सर फिसल जाने के बाद

दोस्तों के साथ चलने में भी खतरे हैं हज़ार
भूल जाता हूँ हमेशा मैं संभल जाने के बाद

अब ज़रा सा फ़ासला रख कर जलाता हूँ चराग़
तजर्बा ये हाथ आया हाथ जल जाने के बाद

वहशत-ए-दिल को है सहरा से बड़ी निस्बत अजीब
कोई घर लौटा नहीं घर से निकल जाने के बाद

----------------------------------------------------------

हम को लुत्फ़ आता है अब फ़रेब-ख़ाने में
आज़माएँ लोगों को ख़ूब आज़माने में

दो-घड़ी के साथी को हम-सफर समझते हैं
किस क़दर पुराने हैं हम नए ज़माने में

तेरे पास आने में आधी उम्र गुजरी है
आधी उम्र गुज़रेगी तुझ से ऊब जाने में

एहतियात रखने की कोई हद भी होती है
भेद हमीं ने खोले हैं भेद को छुपाने में

ज़िन्दगी तमाशा है और इस तमाशे में
खेल हम बिगाड़ेंगे खेल को बनाने में

- Alam Khursheed





झीलें क्या हैं?
उसकी आँखें
उम्दा क्या है?
उसका चेहरा
ख़ुश्बू क्या है?
उसकी साँसें
खुशियाँ क्या हैं?
उसका होना

तो ग़म क्या है?
उससे जुदाई
सावन क्या है?
उसका रोना
सर्दी क्या है?
उसकी उदासी
गर्मी क्या है?
उसका ग़ुस्सा

और बहारें?
उसका हँसना
मीठा क्या है?
उसकी बातें
कड़वा क्या है?
मेरी बातें
क्या पढ़ना है?
उसका लिक्खा

क्या सुनना है?
उसकी ग़ज़लें
लब की ख़्वाहिश?
उसका माथा
ज़ख़्म की ख़्वाहिश?
उसका छूना
दिल की ख्वाहिश?
उसको पाना

दुनिया क्या है?
इक जंगल है
और तुम क्या हो?
पेड़ समझ लो
और वो क्या है?
इक राही है

क्या सोचा है?
उस से मुहब्बत
क्या करते हो?
उस से मुहब्बत
मतलब पेशा?
उस से मुहब्बत
इस के अलावा?
उस से मुहब्बत
उससे मुहब्बत........उससे मुहब्बत........उससे मुहब्बत

- Varun Anand





कह दो दुनिया से न उलझे किसी दीवाने से
ये अजब लोग हैं जी उठते हैं मर जाने से

- Mushtaq Ahmed Mushtaq





उसको मेरी तड़प का गुमां तक नहीं हुआ
मैं इस तरह जला के धुँआ तक नहीं हुआ

तुमने तो अपने दर्द के किस्से बना लिए
हमसे हमारा दर्द बयां तक नहीं हुआ

ये देखना है किस घड़ी दफनाया जाऊँगा
मुझ को मरे हुए तो कई साल हो गए

- Waseem Nadir





ये ना हो के भी हर जगह होना तेरा
मुझे तलाश करके इस तरह से खोना तेरा
अब जुस्तजु में मारेगा
मौत के घाट अब यही उतारेगा

मुझे ज़िंदगी के खेल में, ये हिज्र ही पिछाड़ेगा
बरगद सी इस जान को, तेरा ज़िक्र ही उखाड़ेगा

ये लोग भी अजीब हैं
कैसे सवाल करते हैं
मेरी तिशनगी को देख कर
मुझे पागल ख़याल करते हैं

क्यों मिलना ज़रूरी है
कहानी तो है, क्या हुआ जो अधूरी है
अच्छा! तू कोई ख़ुदा है
जो ना मिलने पे इक्तिफ़ा कर लूँ
या खिड़की से आयी धूल है
जो दिल पोंछ के सफ़ा कर लूँ

चल तू ही बता दे
मैं ये कैसे किस तरह कर लूँ
क्या तूने किया है कभी
जो मुझसे हो गया है
मंज़िल पे पोहोंच कर
क्या तू भी खो गया है

कोई है ऐसा जिसे सोच कर
तू हँस पड़े और रो भी दे
न भूल पाए घड़ियाँ मिलन की
जितने भी वो जो भी थे
मुझ-से होते हैं ये रोग पालने वाले
अपने ही अंदर ये जोग पालने वाले

में तो आतिश हूँ
मुमकिन नहीं की डर जाऊँ
तुम ढूंढ लो बारिश कोई
फ़िकर नहीं की मर जाऊँ

----------------------------------

वो कच्ची उम्र के प्यार भी
हैं तीर भी तलवार भी
ताज़ा हैं दिल पे वार भी
और खूब यादगार भी

घर जाएं वेहशतें
ऐसी भी कोई रात हो
सर सफेद हो गया
लगता है कल की बात हो

ये कच्ची उम्र के प्यार भी
बड़े पक्के निशान देते हैं
आज पे कम ध्यान देते हैं
बहके बहके बयान देते हैं
उनको देखे हुए मुद्दत हुई
और हम अब भी जान देते हैं

-----------------------------------------

क्या प्यार एक बार होता है
नहीं ये बार बार होता है
तो फिर क्यों किसी एक का, इंतेज़ार होता है
वही तो सच्चा प्यार होता है
अच्छा! प्यार भी क्या इंसान होता है
कभी सच्चा कभी झूठा, बेईमान होता है
उसकी रगों में भी क्या, ख़ानदान होता है
मक़सद-ए-हयात नफ़ा, नुकसान होता है
प्यार तो प्यार होता है
बिछड़ भी जाए तो, दिलदार होता है
जब भी हो जिससे भी हो, शानदार होता है
हो एक बार के सौ दफ़ा, प्यार का भी कोई शुमार होता है

----------------------------------------------

तुम कमाल करते हो
यूँ धड़कनों का मेरी
इस्तेमाल करते हो
के जलतरंग मैं हो जाऊँ
रंग रंग मैं हो जाऊँ
तुम्हारा नाम ले कोई
में ख़ुद-ब-ख़ुद से हो जाऊँ
आमदों में खो जाऊँ
और इस खुशी में रो जाऊँ
तेरी दिल फ़रेब छाओं में
मैं आज थक के सो जाऊँ

- Yasra Rizvi

2/17/2020 10:36:00 pm Share:

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Wednesday 12 February 2020

It's been two years now. Considering my maturity in age, I should have stopped feeling the pain by now. With an adult brain and body, theoretically it should take me less time to get over her. But I think my assumption is wrong. This time too it might take as long as it took the last time. 

But I am tired. I am tired of being always nice to people, always on the edge to not let people get unhappy in anyway due to me. Hide everything from them so that they don't feel guilt. Iam tired of this ideal of mine. But I am still not able to change it. Anyway it's not as if telling her now will reduce this suffering. No, of course not. Then why bother someone from their happy life.

It will get better. I still want to believe that. Wish if the hurt would have reduced a little over this time.

Tired

Posted by Subham  |  No comments

It's been two years now. Considering my maturity in age, I should have stopped feeling the pain by now. With an adult brain and body, theoretically it should take me less time to get over her. But I think my assumption is wrong. This time too it might take as long as it took the last time. 

But I am tired. I am tired of being always nice to people, always on the edge to not let people get unhappy in anyway due to me. Hide everything from them so that they don't feel guilt. Iam tired of this ideal of mine. But I am still not able to change it. Anyway it's not as if telling her now will reduce this suffering. No, of course not. Then why bother someone from their happy life.

It will get better. I still want to believe that. Wish if the hurt would have reduced a little over this time.

2/12/2020 03:12:00 am Share:

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Tuesday 4 February 2020

From the past an hour or so, I am lying on bed, lights turned off, trying to get hold of sleep and float away in the realm of Nidra devi (Godess of sleep). So I try this idea of going through all the memories I have since I was born. Right from the beginning in the city, the kindergarten years. The neighbourhood, the school, the home, the family, and everything else. Then the time in the outskirts and the current home. The school years till matriculation in the familiar land, culture and people. Innumerable instances of games, study, friends, teachers, our principal Mrs. Marrykutty Thomas and the others, the Sundays, the new books, the exams and life back then. The family vacation and trips. Then my introduction of a different part of India altogether. A different state, different style of language, different people. The start of an emotional turmoil. Then the move to college, another new place, new culture, new poeple, new language. The new friends, the new lifestyle of hostel and independence of college. The meeting of her. 

Among all this now after years, I feel does she even know. Did she ever come to know. Does she ever think about me, or remember me. The way I had last interacted, would she ever figure out how much of pain I felt and continue to feel? But I also think now sometimes, what's her fault in this. It was me. It was me all along and even now. I don't know. I am still yet to understand life better. I also feel it's enough.

ये ख़याल अक्सर ज़ेहन में आता है
क्या तू कभी सोचती होगी की
अनजाने में ही भले तूने क्या कर दिया
या जो भी हुआ उसकी वजह से 
उससे मेरी क्या हालत हुई

ये रिश्ता जो मैंने दोस्ती का तोड़ा है
वो इसलिए की में थक गया था
तुझे मुझसे दूर भागते हुए
तेरा किसी और में मुझे पाते हुए
तुझे कोई नया मैं मिल गया
इन सब ने मुझे मजबूर कर दिया
मैंने अपने आप को तुझसे दूर कर लिया

रोज़ रोज़ एक ही ज़हर कैसे पीता
काश मौत भी इस से तोहफे में आता

Midnight munchings

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From the past an hour or so, I am lying on bed, lights turned off, trying to get hold of sleep and float away in the realm of Nidra devi (Godess of sleep). So I try this idea of going through all the memories I have since I was born. Right from the beginning in the city, the kindergarten years. The neighbourhood, the school, the home, the family, and everything else. Then the time in the outskirts and the current home. The school years till matriculation in the familiar land, culture and people. Innumerable instances of games, study, friends, teachers, our principal Mrs. Marrykutty Thomas and the others, the Sundays, the new books, the exams and life back then. The family vacation and trips. Then my introduction of a different part of India altogether. A different state, different style of language, different people. The start of an emotional turmoil. Then the move to college, another new place, new culture, new poeple, new language. The new friends, the new lifestyle of hostel and independence of college. The meeting of her. 

Among all this now after years, I feel does she even know. Did she ever come to know. Does she ever think about me, or remember me. The way I had last interacted, would she ever figure out how much of pain I felt and continue to feel? But I also think now sometimes, what's her fault in this. It was me. It was me all along and even now. I don't know. I am still yet to understand life better. I also feel it's enough.

ये ख़याल अक्सर ज़ेहन में आता है
क्या तू कभी सोचती होगी की
अनजाने में ही भले तूने क्या कर दिया
या जो भी हुआ उसकी वजह से 
उससे मेरी क्या हालत हुई

ये रिश्ता जो मैंने दोस्ती का तोड़ा है
वो इसलिए की में थक गया था
तुझे मुझसे दूर भागते हुए
तेरा किसी और में मुझे पाते हुए
तुझे कोई नया मैं मिल गया
इन सब ने मुझे मजबूर कर दिया
मैंने अपने आप को तुझसे दूर कर लिया

रोज़ रोज़ एक ही ज़हर कैसे पीता
काश मौत भी इस से तोहफे में आता

2/04/2020 12:46:00 am Share:

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Sunday 2 February 2020

Enforcement Officer/Accounts Officer EPFO UPSC Exam 2020

Syllabus and study material




upsc epfo

Enforcement Officer/Accounts Officer EPFO UPSC Exam 2020 Syllabus

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Enforcement Officer/Accounts Officer EPFO UPSC Exam 2020

Syllabus and study material




2/02/2020 11:57:00 pm Share:

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