शिकायत तो खुद से है,
तुमसे तो आज भी इश्क़ है।
अब नींद से कहो सुलह कर ले हमसे,
वो दौर चला गया जिसके लिए हम जागा करते थे।
रो रहा हूँ एक मुद्दत से,
इश्क़ जो हो गया था शिद्दत से।
तजुर्बा है तभी तो कह रहा हूँ,
मौत अच्छी है इस मोहब्बत से।
कितनी मुश्किल के बाद टूटा है,
एक रिश्ता जो कभी था ही नहीं।
आहिस्ता आहिस्ता ख़त्म हो जायेंगे,
ग़म ना सही, हम ही सही।
बहुत अजीब हैं ये बंदिशें मोहब्बत की,
न उसने क़ैद में रखा, न हम फरार हुए।
तुम आने का वादा तो करो,
तमाम उम्र हम गुज़ार देंगे इंतज़ार में।
मौत को यूँ ही बदनाम करता है ज़माना,
असली दर्द तो ज़िंदगी देती है।
लफ्ज़ करेंगे इशारा जाने का,
तुम आँखें देख कर रुक जाना।
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