किसी इंसान को पूरी तरह भूल जाना कितना मुश्किल हो सकता है? अगर इस बात को आप सोचें तो अधिकांश लोगों को लगेगा कि ये क्या बेकार की बात है। कुछ नहीं होता किसी को भुलाना। सब बेवजह बेफ़िज़ूल की दिखावट है।
काश यह सच होता। हम कितनी गहराई तक पहुँच जाते हैं किसी इंसान के साथ। पर ये यादें ही तो हैं जो सबकुछ ले आती हैं। जिन चीजों को आप भूलना चाहते हैं वही ले आती हैं ये यादें।
मैं असल में ज़्यादा कुछ चाहता नहीं था उससे। बस इतना था कि मुझे उसकी ज़रूरत थी। बस जैसे थी वो मेरे साथ, जिस तरह से पेश आती थी बस वैसे ही। ना तो मैंने कभी भविष्य चाहा ना ही उससे भी आगे का कुछ और। ये बात अलग है कि अगर वो भी हो जाये तो कुछ बुरा नही पर वो तो फिर किस्मत से कहीं ज़्यादा मिल जाने की बात होगी।
मैं तो जो था उसी से खुश था सिर्फ एक और चीज़ के अलावा। मैं चाहता था कि वो भी कह दे कि जो मुझे लग रहा है या जो मेरे साथ हो रहा है वो उसके साथ भी हो रहा है और उसे भी ऐसा ही लग रहा है। लेकिन ये बस मेरा एक वहम ही तो था। ना तो उसे मेरे जैसा कुछ एहसास हो रहा था ना ही ये सब कुछ उसके लिए मेरे जैसा था।
गलतफहमी तो शुरुआत से ही मेरी थी। मुझे शुरु में ही खुद को संभाल लेना चाहिए था। कितनी अजीब बात है ना कि आप उन्हीं चीजों से पहले भी गुज़र चुके हैं और तब सबक लेकर ये भी स्थिर किया था कि दुबारा यही गलती दोहरानी नहीं है। फिर भी सब कुछ धरा का धरा रह जाता है।
I wish things wouldn't have been like this.
I get so tempted at times. Just to talk once. And except the time I am at work, she's constantly there in my foreground or background, through and through, day and night.
It hurts. She probably must have forgotten me by now. Sometimes I see her WhatsApp DP. She's good. I wish her the best. And happiness.
0 comments: