मैं बिछड़ के तुझसे बुलंदियों पे जो पस्त हूँ,
ये उरूज है के ज़वाल है ये सवाल है।
जिस बुत पे फ़िदा हो गए, जाँ जिसपे लूटा दी,
उसने भी बिछड़ते हुए जीने की दुआ दी।
गुनहगार हैं उसके सो उसकी महफ़िल में हम,
उसके हुस्न को उसका नकाब कहते हैैं।
हम ऐसे सर-फिरे दुनिया को कब दरकार होते हैं,
अगर होते भी हैं तो बे-इंतिहा दुुष्वार होते हैं।
- Qamar Abbas
हम उसके दिल तक पहुंँचते कैसे
ये उरूज है के ज़वाल है ये सवाल है।
जिस बुत पे फ़िदा हो गए, जाँ जिसपे लूटा दी,
उसने भी बिछड़ते हुए जीने की दुआ दी।
गुनहगार हैं उसके सो उसकी महफ़िल में हम,
उसके हुस्न को उसका नकाब कहते हैैं।
हम ऐसे सर-फिरे दुनिया को कब दरकार होते हैं,
अगर होते भी हैं तो बे-इंतिहा दुुष्वार होते हैं।
- Qamar Abbas
हम उसके दिल तक पहुंँचते कैसे
बदन को रस्ता समझ लिया था
मिलन जुदाई तड़प उदासी
ये खेल सारा समझ लिया था
उसे यूँ छोड़ा के उसने हमको
बहुत ज़्यादा समझ लिया था
वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीँ पर रह गया
मेरी आँखों का हर एक मंज़र कहीं पर रह गया
मैं तो होकर आ गया आज़ाद उसकी क़ैद से
ये खेल सारा समझ लिया था
उसे यूँ छोड़ा के उसने हमको
बहुत ज़्यादा समझ लिया था
वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीँ पर रह गया
मेरी आँखों का हर एक मंज़र कहीं पर रह गया
मैं तो होकर आ गया आज़ाद उसकी क़ैद से
दिल मगर इस जल्दबाज़ी में वहीँ पर रह गया
हमको अक्सर ये ख़याल आता है उसको देख कर
ये सितारा कैसे ग़लती से ज़मीं पर रह गया
एहसान ज़िन्दगी पे किये जा रहे हैं हम
मन तो नहीं है फिर भी जिए जा रहे हैं हम
पहला किसी का इश्क़ था दूजा है शायरी
दो हादसों को एक किये जा रहे हैं हम
ऐ शहर-ए-नामुराद मुबारक के अब के बार
वापस न लौटने के लिए जा रहे हैं हम
- Imtiyaz Khan
ज़िन्दगी में ग़म है
ग़म में दर्द है
दर्द में मज़ा है
और मज़े में ज़िन्दगी है
- Ghalib
हमको अक्सर ये ख़याल आता है उसको देख कर
ये सितारा कैसे ग़लती से ज़मीं पर रह गया
एहसान ज़िन्दगी पे किये जा रहे हैं हम
मन तो नहीं है फिर भी जिए जा रहे हैं हम
पहला किसी का इश्क़ था दूजा है शायरी
दो हादसों को एक किये जा रहे हैं हम
ऐ शहर-ए-नामुराद मुबारक के अब के बार
वापस न लौटने के लिए जा रहे हैं हम
- Imtiyaz Khan
ज़िन्दगी में ग़म है
ग़म में दर्द है
दर्द में मज़ा है
और मज़े में ज़िन्दगी है
- Ghalib
उदास एक मुझ ही को तो कर नहीं जाता
वो मुझसे रूठ के अपने भी घर नहीं जाता
वो दिन गए के मोहोब्बत थी जान की बाज़ी
किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता
- Waseem Barelvi
मेरी साँसों में समाया भी बहुत लगता है
और वही शख़्स पराया भी बहुत लगता है
उससे मिलने की तमन्ना भी बहुत है
लेकिन आने जाने में किराया भी बहुत लगता है
फैसला जो कुछ भी हो मंज़ूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क़ हो भरपूर होना चाहिए
अपने हाथों से बनाया है ख़ुदा ने आपको
आपको थोड़ा बहुत मग़रूर होना चाहिए
तूफानों से आँख मिलाओ सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ ख़ता है? तो ये ख़ता एक बार नहीं सौ बार करो
- Dr Rahat Indori
1/02/2020 02:27:00 pm
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